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ठगिनी और व्यापारी भाग-1


आज से दो हजार वर्ष पहले की बात है. सृष्टिपुर नगर भारत का एक साधन संपन्न नगर था. चारोओर खुशिओं का वाश था लेकिन एक वर्ष ऐसा भी आया जब साधन सपंन्न सृष्टिपुर में भयंकर अकाल पड़ गया. इसी नगर में एक व्यापारी रहता था जिसका नाम था धनपतराय. व्यापारी का जैसा नाम था वो स्वयं भी वैसे ही थे. लेकिन अकाल पड़ने की वजह से उनका धंधा चौपट होने लगा. व्यापारी के एक बाईस वर्षीय बेटा था जिसका नाम था यशवर्धन. वह भी अपने पिता के अनुरूप बुद्धिमान था. वह नगर में अपने पिता के काम धंधे में ही सहायता करता था. एक रोज जब यश वर्धन अपने घर आया तो उसका पिता कुछ चिंतित लग रहा था. अपने पिता की चिंता को देखकर उसकी युवापन की नैसर्गिक मुस्कान छूमंतर हो गई. वह उदास होकर अपने पिता के पास जाकर बैठ गया. उसने स्थिति का जायजा लेकर अपने पिताजी से धीमें से कहा- क्या बात है पिताजी आप आज किंचित उदास लग रहे हैं?
धनपत राय- नहीं तो ऐसी कोई बात नहीं है बेटा..
यश- कोई बात नहीं है का क्या मतलब हुआ? आज सच में आप मुझे उदास लग रहे हैं. बताओ ना पिताजी क्या बात है?
`ये क्या बताएंगे बेटा मैं बताती हूँ. पिछले दो महीने से अकाल पड़ने की वजह से हमारा धंधा चौपट हो रहा है. अब इन्हें चिंता सता रही है.`, यश की माँ ने उसे पानी का गिलास देते हुए कहा.
यश- क्या! लेकिन पिताजी आपने मुझे बताया क्यों नहीं?
यश की माँ- बताने से क्या हो जाता? तुम तो अभी युवा ही हो और तेरे पिताजी अब बीमार रहेते हैं तो ऐसे में ये किसी दूसरे नगर जाकर व्यापार भी नहीं कर सकते.
धनपत राय- मैंने बोला था ना तुम्हे की तुम इसे ना बताओ लेकिन तुम हो की मानती ही नहीं..
यश की माँ- तो क्या करती आपको ऐसे चिंतित देखकर मुझे अच्छा नहीं लगता. अब हमारा यश बाहर जाकर धंधा कर सकता है..
यश आश्चर्य से- लेकिन माँ मैं...
यश की माँ- क्यों बेटा कुछ गलत बोल दिया क्या? वैसे भी एक दिन तो तुम्हे बाहर की दुनिया में कदम रखना ही होगा..
धनपत राय- पर पार्वती तुम ये क्या बोल रही हो हमारा यश अभी बहुत छोटा है? ये कैसे व्यापार कर पाएगा?
यश की माँ- अजी क्यों नहीं कर पाएगा? आपने तो इससे भी कम उम्र में व्यापार करना शुरू कर दिया था तो ये क्यों नहीं कर सकता? क्यों बेटा सही कहा ना मैंने?
यश को अचानक से हुई इस तरह की घटना समझ नहीं आ रही थी. वह घर से बाहर पिता के साथ के बिना कभी नहीं गया था. और उसकी माँ तो अब ये चाहने लगी थी की वो किसी दूसरे नगर में जाकर व्यापार करे. जब यश कुछ देर नहीं बोलता है तो उसकी माँ कहती है..
श्री की माँ- बोलो बेटा चुप क्यों हो? अब तुम्हारे पिता के कंधो के भार को उठाने का वक्त आ गया है.. अब तुम्हे जल्दी से अपनी जिम्मेदारियों को समझना होगा..
यश- माँ मैं..
यश की माँ- हाँ! तुम, क्यों तुम नहीं जा सकते क्या?
धनपत राय- अरे तुम ये क्या कह रही हो? अभी यश छोटा है. इसे दुनियादारी की समझ कहाँ है..
यश- नहीं पिताजी माँ सही कह रही हैं वैसे भी तो मुझे कभी न कभी तो घर से बाहर जाना ही होगा व्यापार करने के लिए.
धनपत राय- पर बेटा तुम अकेले कैसे जा पाओगे?
यश- पिताजी मुझे अकेला जाने की क्या जरुरत है? मैं अपने दोस्त श्रीदत को ले जाऊंगा..
धनपत राय- श्री दत. लेकिन बेटा वो तो ब्राह्मण पुत्र है. भला वो तुम्हारे साथ क्यों जाएगा?
यश- पिताजी वो सब आप मुझे पर छोड़ दो.. मैं उसे मना लूँगा..
फिर यशवर्धन इतना कहकर अपने दोस्त श्री दत के घर की तरफ निकल पड़ता है. श्री दत यश वर्धन का बचपन का दोस्त था. उसका परिवार गरीब था. पिता की मृत्यु हो चुकी थी. अभी हाल फिलहाल में ही श्री दत की शादी हुई थी. यश ने सारी बात अपने दोस्त को बता दी और साथ चलने के लिए जैसे ही आग्रह किया तो श्री दत चौंककर बोला.
श्रीदत- नहीं दोस्त. मैं तुम्हारे साथ नहीं जा सकता.
यश- क्या! लेकिन क्यों नहीं जा सकते?
श्री दत- अरे! ये भी कोई पूछने की बात हुई भला. मेरी अभी-अभी शादी हुई है. नई-नई घर पर पंडिताईन आई है यार मैं तुम्हारे साथ नहीं जा सकता.
यश- देख दोस्त. एक साल की ही तो बात है. इतने दिन मैं शायद अगली साल बारिश हो जाए और मेरा व्यापार भी चमक जाएगा. इसलिए बस एक साल के लिए ही तो जाना है.
श्रीदत- नहीं दोस्त मैं तुम्हारे साथ नहीं जा सकता. मेरा काम वैसे भी पांडित्य कर्म का है. अगर इस अकाल में किसी की शादी नहीं हुई तो क्या हुआ कोई भूख से मरेगा तो उसकाकर्मकांड करवा के ही काम चला लूँगा.
यश- वाह! दोस्त इसे ही बोलते हैं क्या दोस्ती. शादी के बाद तो तुम बिलकुल ही बदल गए. मैंने तो तुम्हे बचपन से मेरा सच्चा दोस्त माना था. लेकिन तुम तो स्वार्थी निकले..
श्री दत- देख भाई. जब तेरी भी नई- नई शादी होगी तो तू भी ऐसा ही करेगा. तुम जाओ वैसे भी इंसान इस दुनिया में अकेला ही तो आया था और अकेला ही जाएगा. कोई पराया नहीं. ना ही कोई अपना. ना कोई दुश्मन और ना ही कोई सखा.
यश- देख दोस्त मैं तुम्हारी इन दार्शिनिक बातों को सुनने तुम्हारे पास नहीं आया हूँ. अगर तुम मेरे साथ चलोगे तो मैं तुम्हे अपने मुनाफे में से बीस प्रतिशत हिस्सा दूंगा.
श्रीदत ख़ुशी से- क्या! सच में दोगे?
यश- अरे! हाँ सच में दूंगा. लेकिन अगर साथ चलोगे तब वरना नहीं..
श्रीदत- ठीक है.
यश- ठीक है ये हुई ना स्वार्थी दोस्त वाली बात. कमीना कहीं का. लेकिन कल ही निकलना होगा हमें. ठीक है.
श्रीदत- ठीक है...
यश वर्धन ने अपने दोस्त श्री दत को साथ चलने के लिए मना लिया था. लेकिन जैसे ही श्री दत ने अपनी पत्नी को रात को ये बात बताई तो वो नाराज हो गई. उसने कैसे भी करके अपनी पत्नी को मना लिया. वे अगली सुबह ही यात्रा के लिए निकलने लगे लेकिन यात्रा पर निकलने से पूर्व ही श्री दत ने यश वर्धन के सामने तीन शर्त रख दी.
क्रमश- ..............

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12 Comments

Dilawar Singh

14-Feb-2024 01:20 PM

अद्भुत👌👌

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Arman

26-Nov-2021 11:11 PM

Nice

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Fiza Tanvi

20-Nov-2021 01:08 PM

Good

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